आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु शारीरिक शुद्धि के लिए उत्तम मानी जाती है।
सर्दियों में संचित कफ दोष वसन्त ऋ तु में अनेक प्रकार के कफजन्य रोग पैदा
करते हैं। जैसे सर्दी, जुकाम, खांसी, गला खराब होना और सांस संबंधी रोग।
कारण ऋतु परिवर्तन के समय हमारी रोग प्रतिरोधक शक्तिक्षीण हो जाती है। इसलिए जो लोग सांस रोग (दमा), जुकाम या नजला और एलर्जी से पीडि़त होते हैं, उनके लिए वसन्त ऋतु कष्टदायी होती है।
सर्दियों में हमारी जठराग्नि प्रबल होती है। इसलिए गरिष्ठ या भारी भोजनों का सेवन अधिक होता है। ये भोजन पूर्ण रूप से न पच पाने के कारण एक विषैले तत्व 'आम' को पैदा करते हैं। सर्दियों में शरीर में 'आम' व कफ का संचय होता है। वसंत ऋ तु में जब हल्की गर्मी पड़ती है और सूर्य की किरणें कुछ तीव्र होती हैं, तब शरीर में संचित 'आम' व कफ का पिघलना शुरू होता है।
स्वास्थ्य समस्याएं
यही कारण है कि वसंत ऋ तु में छीकें आना, नाक बहना, खांसी के साथ बलगम (कफ) निकलना, सांस फूलना और एलर्जी जैसे रोग आमतौर पर देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सुस्ती, थकान, सिरदर्द, चक्कर आना, भूख न लगना और शरीर में वेदना जैसे लक्षण भी आमतौर पर देखने को मिलते हैं।
खान-पान पर दें ध्यान
वसंत ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए हल्का-सुपाच्य भोजना ग्रहण करना हितकर होता है। कफवद्र्धक और गरिष्ठ भोजन जैसे मिठाई, तली हुई चीजें, दूध से बने उत्पादों और खटाई या खट्टे खाद्य पदार्र्थों से परहेज करें।
वसन्त ऋ तु में दिन का सोना भी वर्जित है। ऐसा इसलिए, क्योंकि दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है। पानी में सोंठ या अदरक उबाल कर और उसमें शहद मिलाकर पीना अच्छा है। भोजन करते समय या बाद में भी कुनकुना जल ही पीना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में शरीर की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा मुख्य रूप से वमन क्रिया उत्तम मानी गई है। यह क्रिया प्रकुपित कफ को शरीर से बाहर निकालती है। पंचकर्म हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख -रेख में ही करना चाहिए। उदवर्तन (जड़ी बूटियों के पाउडर से मालिश) और गरम पानी से गरारे करने से भी कफ को समुचित स्थिति (साम्यावस्था) में लाया जाता है। सोंठ, काली मिर्च और पिप्पली को बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर इसे आधा-आधा चम्मच मात्रा में सुबह-शाम गुनगुने पानी में शहद के साथ सेवन करना हितकर होता है। इससे 'आम' का पाचन होता है और शरीर की शुद्धि होती है।
कारण ऋतु परिवर्तन के समय हमारी रोग प्रतिरोधक शक्तिक्षीण हो जाती है। इसलिए जो लोग सांस रोग (दमा), जुकाम या नजला और एलर्जी से पीडि़त होते हैं, उनके लिए वसन्त ऋतु कष्टदायी होती है।
सर्दियों में हमारी जठराग्नि प्रबल होती है। इसलिए गरिष्ठ या भारी भोजनों का सेवन अधिक होता है। ये भोजन पूर्ण रूप से न पच पाने के कारण एक विषैले तत्व 'आम' को पैदा करते हैं। सर्दियों में शरीर में 'आम' व कफ का संचय होता है। वसंत ऋ तु में जब हल्की गर्मी पड़ती है और सूर्य की किरणें कुछ तीव्र होती हैं, तब शरीर में संचित 'आम' व कफ का पिघलना शुरू होता है।
स्वास्थ्य समस्याएं
यही कारण है कि वसंत ऋ तु में छीकें आना, नाक बहना, खांसी के साथ बलगम (कफ) निकलना, सांस फूलना और एलर्जी जैसे रोग आमतौर पर देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त सुस्ती, थकान, सिरदर्द, चक्कर आना, भूख न लगना और शरीर में वेदना जैसे लक्षण भी आमतौर पर देखने को मिलते हैं।
खान-पान पर दें ध्यान
वसंत ऋतु में स्वस्थ रहने के लिए हल्का-सुपाच्य भोजना ग्रहण करना हितकर होता है। कफवद्र्धक और गरिष्ठ भोजन जैसे मिठाई, तली हुई चीजें, दूध से बने उत्पादों और खटाई या खट्टे खाद्य पदार्र्थों से परहेज करें।
वसन्त ऋ तु में दिन का सोना भी वर्जित है। ऐसा इसलिए, क्योंकि दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है। पानी में सोंठ या अदरक उबाल कर और उसमें शहद मिलाकर पीना अच्छा है। भोजन करते समय या बाद में भी कुनकुना जल ही पीना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार इस ऋतु में शरीर की शुद्धि के लिए पंचकर्म चिकित्सा मुख्य रूप से वमन क्रिया उत्तम मानी गई है। यह क्रिया प्रकुपित कफ को शरीर से बाहर निकालती है। पंचकर्म हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख -रेख में ही करना चाहिए। उदवर्तन (जड़ी बूटियों के पाउडर से मालिश) और गरम पानी से गरारे करने से भी कफ को समुचित स्थिति (साम्यावस्था) में लाया जाता है। सोंठ, काली मिर्च और पिप्पली को बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर इसे आधा-आधा चम्मच मात्रा में सुबह-शाम गुनगुने पानी में शहद के साथ सेवन करना हितकर होता है। इससे 'आम' का पाचन होता है और शरीर की शुद्धि होती है।
No comments:
Post a Comment